1 / 10

प्रस्तुतकर्ता मुनेश मीना प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (संस्कृत) के.वि.जे.एन.यू. एन एम आर नई दिल्ली-६७

प्रस्तुतकर्ता मुनेश मीना प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (संस्कृत) के.वि.जे.एन.यू. एन एम आर नई दिल्ली-६७. सुभाषितान (जीवनोपयोगी कथनानि). १ पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम । मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥

ronia
Télécharger la présentation

प्रस्तुतकर्ता मुनेश मीना प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (संस्कृत) के.वि.जे.एन.यू. एन एम आर नई दिल्ली-६७

An Image/Link below is provided (as is) to download presentation Download Policy: Content on the Website is provided to you AS IS for your information and personal use and may not be sold / licensed / shared on other websites without getting consent from its author. Content is provided to you AS IS for your information and personal use only. Download presentation by click this link. While downloading, if for some reason you are not able to download a presentation, the publisher may have deleted the file from their server. During download, if you can't get a presentation, the file might be deleted by the publisher.

E N D

Presentation Transcript


  1. प्रस्तुतकर्तामुनेश मीनाप्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (संस्कृत)के.वि.जे.एन.यू. एन एम आर नई दिल्ली-६७

  2. सुभाषितान (जीवनोपयोगी कथनानि) १ पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम । मूढै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ॥ अर्थात्‌- पृथिवी पर मुख्य रूप से तीन रत्न(मूल्यवान वस्तु) माने गये हैं । यथा – जल, अन्न और सुभाषितम । मूर्ख व्यक्तियों द्वारा तो पत्थर के टुकडों को भी रत्न की संज्ञा दे दी जाती है ।

  3. प्रश्ना:- १ पृथिव्यां कति रत्नानि सन्ति ? २ रत्नानां नामानि लिखत ? ३ कै: पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते ? ४ मूढै: कुत्र रत्नसंज्ञा विधीयते ? व्याकरणप्रश्ना:- १ “पृथिव्याम्” इत्यत्र का विभक्ति: (क) प्रथमा (ख) सप्तमी २ “त्रीणि” इत्यस्मिन् पदे किं लिंगम् अस्ति ? (क) पुल्लिग़म् (ख) नपुंसकलिगम्

  4. २ सत्येन धार्यते पृथिवी सत्येन तपते रवि: । सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम ।। अर्थात- हमारी धरती सत्य पर आधारित है, सूर्य देवता सत्यता के साथ तपता रहता है अर्थात प्रकाशमान रहता है, वायु भी सदैव सत्यता के साथ बहती है । इस प्रकार सम्पूर्ण सृष्टि सत्य में प्रतिष्ठित है । प्रश्नानाम् उत्तराणि कोष्ठकात चित्वा लिखत- १ पृथिवी केन धार्यते ? (सत्येन/असत्येन) २ सत्येन क: तपते ? (रवि:/कवि:) ३ वायु: केन वाति ? (सत्येन/असत्येन) ४ सर्वं कुत्र प्रतिष्ठितम् ? (असत्ये/सत्ये) व्याकरण-प्रश्ना:- १ ‘सत्येन’इत्यत्र का विभक्ति: ? (क) प्रथमा (ख) तृतीया २ ‘पृथिवी’ इत्यत्र क: लिंग: अस्ति ? (क) पुल्लिंग: (ख) स्त्रीलिंग:

  5. ३ दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये । विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥ अर्थात्‌ - दान करने में,तपस्या करने में या कठिन परिश्रम करने में, शौर्य में, विशेष ज्ञान में, विनम्रता में, नीति में कभी भी आश्चर्य या संकोच नहीं करना चाहिए । इस प्रकार हमारी पृथिवी अनेक रत्नों वाली है । प्रश्नानाम् उत्तराणि कोष्ठकात्‌ चित्वा लिखत- १ ‘दाने,विज्ञाने’ इत्ययो: द्वयो: पदयो: का विभक्ति: ? (क) चतुर्थी (ख) सप्तमी २ ‘विस्मय:’ इति शब्दस्य क: अर्थ; ? (क) आश्चर्य (ख) निश्चय: ३ ‘वसुन्धरा’ इति शब्दस्य क: अर्थ: ? (क) पृथिवी (ख) आकाश:

  6. ४ सद्भिरेव सहासीत सद्भि: कुर्वीत संगतीम्‌ । सद्भिर्विवादं मैत्रीं च नासद्भि: किंचिदाचरेत्‌ ॥ अर्थात्‌ - सज्जनों के साथ बैठना चाहिए, सज्जनों के साथ संगति करनी चाहिए, साथ ही किसी विषय को लेकर यदि मतभेद हो तो वह भी सज्ज्नों के साथ ही होना चाहिए, सज्ज्नों के साथ ही मित्रता होनी चाहिए । असज्ज्न या दुर्जनों के साथ किसी प्रकार का आचरण नहीं करना चाहिए । प्रश्ना:- १ कै: सहासीत ? - सद्भि:/असद्भि: २ कै: संगतिम कुर्वीत ? - सद्भि:/असद्भि: ३ कै: विवादं कुर्वीत ? - सद्भि:/असद्भि: ४ कै: मैत्रीं कुर्वीत ? - सद्भि:/असद्भि: ५ कै: किंचिदाचरेत्‌ न कर्तव्य: ? - सद्भि:/असद्भि:

  7. व्याकरण-प्रश्ना:- १ ‘सद्भि:’ इत्यत्र का विभक्ति: ? - प्रथमा/तृतीया २ ‘सह’ इत्यस्य योगे का विभक्ति: भवति ? - द्वितीया/तृतीया ३ ‘संगतिम्‌’ इत्यत्र क: लिंग: ? - पुल्लिंग:/स्त्रीलिंग:/नपुंसकलिंग: ४ ‘मैत्रीं’ इत्यत्र क: लिंग: ? - पुल्लिंग:/स्त्रीलिंग:/नपुंसकलिंग: ५ ‘आचरेत्‌’ इत्यत्र क: लकार: । लट्‌/लोट्‌/विधिलिंग: * रेखांकित पदम्‌ आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- १ सद्भि: एव सहासीत । - कै:/केन/काभि: २ सद्भि: संगतिम्‌ कुर्वीत । - कम्‌/किम्‌/कथम्‌ ३ सद्भि: मैत्रीं कुर्वीत । - कथम्‌/किम्‌/कम्‌

  8. ४ धनधान्यप्रयोगेषु विद्याया: संग्रहेषु च । आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्ज सुखी भवेत्‌॥ अर्थात्‌ - धन और धान्य का प्रयोग करने में, विद्या का संग्रह करने में, भोजन करने में तथा व्यवहार करने में जो व्यक्ति लाज शर्म छोड देता है, वह व्यक्ति हमेशा सुखी रहता है । प्रश्ना:- १ श्लोकात्‌/कोष्ठकात्‌ अव्ययपदं चित्वा लिखत- - च/सुखी/लज्जा २ ‘सुखी’ इत्यत्र क: लिंग: अस्ति ? - पुल्लिंग:/स्त्रीलिंग: ३ ‘भवेत्‌’ इत्यत्र क: लकार: ? - लट्‌/विधिलिंग

  9. ५ क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं साधयते । शान्तिखड्ग: करे यस्य किं करिष्यति दुर्जन: ॥ अर्थात्‌- क्षमा मनुष्य का ऐसा हथियार है जिसके बलबूते संसार को वश में किया जा सकता है, अर्थात्‌ क्षमा से क्या-क्या नहीं साधा जा सकता है । शान्तिरूपी तलवार जिसके हाथ में होती है, उसका दुर्जन या दुश्मन कुछ भी नहीं बिगाड सकता है । प्रश्ना:- १ वशीकृति लोके का ? - क्षमा/अक्षमा २ ‘करे’ इत्यस्य पर्यायपदं चिनुत- - हस्ते/पदे ३ ‘क्षमया’ इत्यत्र का विभक्ति: ? - प्रथमा/तृतीया ४ ‘करिष्यति’ इत्यत्र क: लकार: ? -लट्‌/लृट्‌

  10. प्रश्ननिर्माण/धातुनिर्धारणम्प्रश्ननिर्माण/धातुनिर्धारणम् रेखांकितपदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत- १ पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि । - कति/कानि २ सत्येन धार्यते पृथिवी । - केन/कया ३ सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् । - कुत्र/कदा ४ त्यक्तलज्ज: सुखी भवेत्‌। - क:/का ५ क्षमा वशीकृति: लोके । - का/किम् अधोलिखितपदेषु धातुनिर्धारणम् कुरुत- भवेत्‌ = .................... करिष्यति = .............. पश्य = ..................... तिष्ठति = ................. पठिष्यति = ...............

More Related