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Indic academy initiative for publishing content on Shastraas, Indic Knowledge Systems & Indology and to showcase the activities of Indic Academy.<br>Visit us:<br>https://www.indica.today/<br>
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बंदउँ राम नाम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥बिधि हरि हर मय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥
मानव सभ्यता जिसका गंगा तट पर शीघ्रता से विकास हुआ, अब उस सभ्यता में मानव विकास के दोष भी प्रकट होने लगे थे। अब समाज में वर्ग भेद भी था और राक्षसी विचारों का दूषण भी शीघ्रता से बढ़ रहा था। यही कारण था, कि जो कार्य पूर्व में विष्णु जी ने सरलता से कर लिया था, और समाज में दूषित विचारों को बढ़ने से रोक लिया था। पर अब उन विचारों के साथ साथ अन्य दोष भी समाज में पनप रहे थे। मानव सभ्यता आपस में ही लड़ झगड़कर नष्ट होने की ओर बढ़ रही थी। उनके विचारों में आये दोष और वर्ग भेद का कारण जानने के लिए विष्णु जी ने विचार किया कि इस समस्या से मानव समाज के भीतर रहकर ही लड़ा जा सकता है। उन्होंने मानव अवतार लेने का निर्णय किया।
चैत्र के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को विष्णु जी ने श्री राम के रूप में मानव अवतार लिया। गुरुकुल शिक्षा पूर्ण होते ही, विश्वामित्र उन्हें अपने साथ ले गए। उन्होंने अपनी युवावस्था का अधिकतर समय सामान्य जनों के मध्य रहकर व्यतीत किया। उन्होंने महल से लेकर गांव, शहर और वनों में रहने वाली मानव सभ्यता के संग ही वनों में रहने वाले वृक्ष और पशुओं को भी जाना और समझा। वर्ग भेद के कारण जो सभ्यता दो अंगों में बंट गई थी, उसे साथ लाकर एकमत करने के उन्होंने प्रयास किए, सभी की समस्याओं को उन्होंने सुना।
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