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प्रस्तुतीकरण द्वारा हिन्दी शिक्षक :- रामेश्वर प्रसाद पद :- टी.जी.टी केन्द्रीय विद्यालय ओ.एन.जी.सी . अंकलेश्वर. मेघ आए. जीवनी :- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना / परिचय जन्म : - 15 सितंबर 1927 निधन: - 24 सितंबर 1983 जन्म स्थान :- जिला बस्ती , उत्तर प्रदेश , भारत
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प्रस्तुतीकरण द्वारा हिन्दी शिक्षक:-रामेश्वरप्रसाद पद:-टी.जी.टी केन्द्रीय विद्यालयओ.एन.जी.सी. अंकलेश्वर
जीवनी :- सर्वेश्वरदयाल सक्सेना / परिचय जन्म:- 15 सितंबर 1927 निधन:- 24 सितंबर 1983 जन्म स्थान :- जिला बस्ती, उत्तर प्रदेश, भारत कुछ प्रमुखकृतियाँ :- काठ की घंटियाँ, बाँस का पुल, गर्म हवाएँ। विविध :- कविता संग्रहखूँटियों पर टँगे लोगके लिए कासाहित्यअकादमी पुरस्कारसहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कारसे विभूषित।।
पंक्तियाँ:-मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। आगे-आगे नाचती - गाती बयार चलीदरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी गली-गलीपाहुन ज्यों आये हों गाँव में शहर के। मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। भावार्थ:- बादल बड़े सज-धज के और सुंदर वेष धारण करके आ गए हैं। उनके आगे आगे नाचती-गाती हुई हवा चल पड़ी है। मनोरम मेघों को देखने के लिए गली-गली में दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगे हैं।ऎसा लगता है,जैसे गाँव में शहर के मेहमान सज-धज कर आए हों।बादल इस प्रकार बन-सँवर कर आ गए हैं। आशय यह है कि वर्षा ऋतु आ गई है।बादल आकाश में सज गए हैं।हवा भी मस्ती में चलने लगी है।लोगोंने वर्षा की प्रतीक्षा में अपने घर के दरवाजे और खिड़कियाँ खोल दिए हैं।सब ओर बादलों के बरसने की चाह है।
काव्य-सौंदर्य:- प्रकृति का मानवीकरण किया गया है।मानवीकरण अलंकार है। भाषा चित्रात्मक तथा प्रवाहपूर्ण है।वर्णन में नवीनता और ताजगी है। आगे-आगे और गली-गली में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है। बन-ठन,नाचती-गाती जैसे शब्द-युग्मों के कारण कविता में गति आ गई है। कवि ने मेघ को शहरी मेहमान के रूप में,हवा को आनंदित प्रिया के रूप में तथा सारे गाँववासियों को उत्साह में मग्न दिखाया है।
पंक्तियाँ:-पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाये आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाये बाँकी चितवन उठा नदी, ठिठकी, घूँघट सरके। मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। भावार्थ :-बादलआकाश में सज-धज के आ गए हैं।उधर आँधी चलने लगी है।पेड़हवा के कारण ऎसे झुक गए हैं मानो वे गर्दन उचका कर मेघों कीओर झाँकने लगे हों।धूल ऎसे भाग रही है मानो कोई ग्रामीण बाला उत्साह से घाघरा उठाए भागी जा रही हो।नदी मेघों को तिरछी नजरों से देखकर ठिठक गई-सी लगती है।स्त्रियों ने अपने घूँघट खोल दिए हैं। आशय यह है कि मेघ आकाश में सुशोभित हैं।हवा के कारण पेड़नीचे को झुक गए हैं।धूल-भरी आँधी चल पड़ेहै।ऎसे समय में नदी का मोड़ बड़ासुहाना लग रहा है।
काव्य सौंदर्य प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पेड़ों का झाँकना, धूल का घाघरा उठाकर भागना, नदी का ठिठकना,काल्पनिक और नाटकीय प्रयोग है। भाषा चित्रात्मक होने के साथ-साथ प्रवाहपूर्ण भी है। अनुप्रास और लघु शब्दावली के कारण काव्य में गति आ गई है।
पंक्तियाँ:-बूढ़े़ पीपल ने आगे बढ़ कर जुहार की‘बरस बाद सुधि लीन्ही’ बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। भावार्थ:-बादलआकाश में सज-धज के आ गए हैं।पीपल के बूढ़ेपेड़ ने झुककर मानो उसे नमस्कार किया।गर्मी से व्याकुल लता किवाड़ के पीछे छिपकर मानो उलहाने के स्वर मेंबोली-रे मेघ,तुमने तो वर्ष-भर बाद हमारी सुध ली है।गाँव का तालाब मेघ के आने की खुशी में आनंदमग्न होकर पानी की परात भर लाया। आशय यह है कि वर्षा ऋतु है।मेघ आकाश में सजे हुए हैं।पीपल का पुराना वृक्ष ठंडी हवा के झोंकोंसे झुक गया है।प्यासी लताएँ पानी बरसनेकी आशा से खुश हैं।तालाब का पानी भी आज लहरें ले रहा है।सारी प्रकृति प्रसन्न है।
काव्य सौंदर्य पूरा दृश्य कल्पनापूर्ण एवं मनोरम है।मेघ सजा-सँवरा मेहमानहै।मानवीकरण अलंकार है। भाषा प्रवाहपूर्ण,अनुप्रासमयी तथा सरस है। ब्रज भाषा के संवाद से कविता और भी मनोहारी बन पड़ी है।
पंक्तियाँ:-क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’ बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके मेघ आये बड़े बन-ठन के, सँवर के। भावार्थ:-आकाश में बादल इस तरह सघन होकर छा गए हैं,जैसे अतिथि के आगमन पर अटारी पर लोगों का जमघट लग जाता है।बिजली दमक उठी है।क्षमा करो।हमारे भ्रम की की गाँठ खुल गई है।हमें भ्रम था कि तुम नहीं बरसोगे।पर तुम बरस पङे हो।झर-झर की आवाज मे तुम्हारा प्रेम उमड़ पड़ा है।इस प्रकार वर्षा के बादल सज-सँवर कर आकाश में छा गए हैं। आशय यह है कि आकाश में दूर तक बादलों का जमघट लगा है। अब वे धारासर बरस पेङ हैं।
काव्य सौंदर्य कवि ने एक-एक दृश्य में मेघ-रूपी अतिथि,और प्रतीक्षा कर रहे गाँववासियों का प्रेम दिखाया है। अनुप्रास,स्वरमैत्री और पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग हुआ है। वर्षा ऋतु का दृश्य साकार हो उठा है।