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कोयला खनन और सतत विकास: अडानी हसदेव का दृष्टिकोण
आधुनिक दुनिया में ऊर्जा का महत्व निर्विवाद है। बिजली से चलने वाले उपकरणों से लेकर परिवहन तक, ऊर्जा हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग बन चुकी है। भारत जैसे विकासशील देश में, कोयला अभी भी ऊर्जा उत्पादन का एक प्रमुख स्रोत है। हालांकि, कोयले जैसे जीवाश्म ईंधन के उपयोग से पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। जलवायु परिवर्तन, वायु प्रदूषण और जल प्रदूषण जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हमें सतत विकास की राह पर चलना होगा।
सतत विकास का अर्थ है वर्तमान पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करना, भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किए बिना। दूसरे शब्दों में, यह आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच संतुलन बनाना है।
यही वह चुनौती है जिसका सामना कोयला खनन उद्योग कर रहा है। एक ओर, कोयला ऊर्जा सुरक्षा और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, वहीं दूसरी ओर, इसके खनन से पर्यावरण को होने वाले नुकसान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
छत्तीसगढ़ में स्थित अडानी हसदेव कोयला खदान भारत की सबसे बड़ी कोयला खदानों में से एक है। अडानी समूह का दावा है कि हसदेव परियोजना कोयला खनन और सतत विकास के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करती है। आइए, इस दावे की पड़ताल करें और देखें कि अडानी हसदेव कोयला खनन के साथ-साथ सतत विकास को कैसे साकार करने की दिशा में काम कर रहा है।